इ मेल द्वारा आज मुझे मेरे विचारों पर ये टिप्पणी अथवा टीका-टिप्पणी मिली
है . किसी भद्र महिला ने ही भेजी है . क्योंकि पुरूष की तो हिम्मत ही नहीं होती
मुझे सन्देश भेजने की . तो बाकी बात बाद में, पहले वह टीका-टिप्पणी आपको
दिखा दूँ
''रोज़ी जी आपने जो विचार प्रकट किये हैं उनमे अपरिपक्वता झलकती है .डंडा
लेकर पिटाई करना अगर सब लड़कियों के बस की बात होती तो शायद बदतमीज़ियां
यहाँ तक न बढ़ती .ये न भूलें कि लड़कों के परिवार वाले उनकी गलती होते हुए
भी उनका पक्ष लेते हैं और लड़कियों को बदनाम करते हैं .बहरहाल आप जिस दिन
से ब्लॉग जगत में उदित हुई हैं छा गयी हैं .आपके बारे में सोचने पर जो छवि
दिमाग में आती है वो कुछ कुछ ''आरजू'' फिल्म में लड़की बनकर आये राजेन्द्र
कुमार से मिलती है''
अब मेरा कहना यह है कि
अपरिपक्वता झलकती है
अब उनचास साल की उम्र में भी मेरे विचार अपरिपक्व हैं तो अब अगले जनम में ही पकेंगे
डंडा
लेकर पिटाई करना अगर सब लड़कियों के बस की बात होती तो शायद बदतमीज़ियां
यहाँ तक न बढ़ती .
तो फिर झेलो बदतमीजियाँ लड़कों की ...शिकायत का ढकोसला काहे करती हो . अरे जिस
बेलन से अपने पति को डराती हो, गुंडों के सामने उसे क्यों नहीं लेती हाथ में .......डंडा न
सही,चप्पल तो पहनती हो न बहन, वही फेंक के मारो सालों को
लड़कों के परिवार वाले उनकी गलती होते हुए
भी उनका पक्ष लेते हैं और लड़कियों को
बदनाम करते हैं
मतलब ये तो मानती हो कि लड़के के परिवार वाले,लड़के का पक्ष लेते हैं और ज़ाहिर
है परिवार सिर्फ मर्दों से नहीं बनता ....उसमे औरत या नारी भी होती है .यानि आप ये
कह रही हैं कि नारी भी नारी को ही बदनाम करती है .पुरूष का साथ देती है . अब
आपने यह नहीं लिखा कि जब लड़के के परिवार वाले लड़के का साथ देते हैं तब लड़की
के घर वाले क्या करते हैं ...........क्या कहा -साथ नहीं देते ..ओह माई गोड ..इसका
मतलब है लड़की के घर वालों को अपनी लड़की की बात का भरोसा नहीं होता . अगर
ऐसी बात है तो अफ़सोस जनक है और नारी को भरोसा कायम करने की कोशिश
करनी चाहिए .
आप जिस दिन
से ब्लॉग जगत में उदित हुई हैं छा गयी हैं .आपके बारे में सोचने पर
जो छवि
दिमाग में आती है वो कुछ कुछ ''आरजू'' फिल्म में लड़की बनकर आये
राजेन्द्र
कुमार से मिलती है''
यहाँ तो आपने लूट ही लिया प्यार से ...........भई अगर मैं छा गयी हूँ तो आपको
उत्सव करना चाहिए .मेरा अभिनन्दन करना चाहिए . क्योंकि मैं अपना टेलेंट ले कर
आई हूँ .लोगों पर फब्तियां कसने के बजाय मैं आत्मकेन्द्रित रह कर सृजन करती हूँ .
और रही बात फिल्म आरज़ू की तो मैंने आज तक कोई फिल्म देखी नहीं, ये
राजेन्द्रकुमार उस फ़िल्ममे क्या बेचते हैं मुझे नहीं पता . मैं तो मेरा जानती हूँ कि मैं
एक औरत हूँ लेकिन दबंग औरत .......केवल नाम और शरीर से नारी हूँ, वर्ना लोग
कहते हैं कि मैं नाहरी [शेरनी ] हूँ
लब्बोलुआब यह है कि आपको शायद कोई काम नहीं रहा होगा इसलिए बैठे ठाले
आपने मुझे टीप दिया और मज़े की बात यह है कि मैं भी फ़ालतू बैठी थी इसलिए
मैंने भी यह टाईमपास कर लिया . न आपकी बात में कोई गम्भीरता है न ही, मेरी
इस पोस्ट में
लिहाज़ा थोड़ा गंभीर होना सीखो ..okay ..........
रोज़ी