Wednesday 10 July 2013

आप भी देखिये शिखा कौशिक की घिनौनी सोच



सोच सोच में कितना फर्क होता है, जो हर इन्सान को इक दूजे से जुदा 

पहचान और व्यक्तित्व देती है . यह आज शिखा कौशिक की एक लघुकथा

घिनौनी सोच  में देखने को मिला . बहुत अच्छी  रचना है . आप भी पढ़ें

और  लेखिका को बधाई की टिप्पणी दें

रोज़ी

Monday 8 July 2013

आज एक कविता पढने को मिली जिसने मुझे भीतर तक तृप्त कर दिया



बहुत दिन बाद आज एक कविता पढने को मिली जिसने  मुझे भीतर तक 


तृप्त कर दिया.लेकिन  दुखी भी हूँ यह सोच कर  कि ऐसी सार्थक कविता 

मैं क्यों नहीं लिख पाई अब तक . 


लीजिये आप भी आनंद इस  शानदार कविता का  जिसमें कवि  ने अपना 

हृदय खोल कर रख दिया है . मज़े की  बात तो यह है कि  यह कविता यहाँ 

मैं  मूल रचनाकार श्री अलबेला खत्री की अनुमति के बिना ही  उनकी फेसबुक 

वाल से  चुरा कर लगा रही  हूँ-


AAJ EK KAVITA UN LOGON KE LIYE JO KAVITA SE PREM KARTE HAIN AUR PRAKRITI KI MAHTTA JAANTE HAIN .....IS KAVITA KO AGAR MERE PYARE DOST LIKE KARTE HAIN TO MAIN SAMJHUNGA KI MAINE KUCHH LIKHA ..AUR LOGON NE MERA KUCHH PADHA - ALBELA KHATRI 
 

प्रकृति में मानव की माता का आभास है
प्रकृति में प्रभु के सृजन की सुवास है

प्रकृति के आँचल में अमृत के धारे हैं
नदी-नहरों में इसी दूध के फौव्वारे हैं

प्राकृतिक ममता की मीठी-मीठी छाँव में
झांझर सी बजती है पवन के पाँव में

छोटे बड़े ऊँचे नीचे सभी तुझे प्यारे माँ
हम सारे मानव तेरी आँखों के तारे माँ

भेद-भाव नहीं करती किसी के साथ रे
सभी के सरों पे तेरा एक जैसा हाथ रे

गैन्दे में गुलाब में चमेली में चिनार में
पीपल बबूल नीम आम देवदार में

पत्ते - पत्ते में भरा है रंग तेरे प्यार का
तेरे मुस्कुराने से है मौसम बहार का

झरनों में माता तेरी ममता का जल है
सागरों की लहरों में तेरी हलचल है

वादियों में माता तेरे रूप का नज़ारा है
कलियों का खिलखिलाना तेरा ही इशारा है

तूने जो दिया है वो दिया है बेहिसाब माँ
हुआ है न होगा कभी, तोहरा जवाब माँ

तेरी महिमा का मैया नहीं कोई पार रे
तेरी गोद में खेले हैं सारे अवतार रे

सोना चाँदी ताम्बा लोहा कांसी की तू खान माँ
हीरों- पन्नों का दिया है तूने वरदान माँ

तेरे ही क़रम से हैं सारे पकवान माँ
कैसे हम चुकाएंगे तेरे एहसान माँ

तेरी धानी चूनर की शान है निराली रे
दशों ही दिशाओं में फैली है हरियाली रे

केसर और चन्दन की देह में जो बन्द है
मैया तेरी काया की ही पावन सुगन्ध है

यीशु पे मोहम्मद पे मीरा पे कबीर पे
नानक पे बुद्ध पे दया पे महावीर पे

सभी महापुरुषों पे तेरे उपकार माँ
सभी ने पाया है तेरे आँचल का प्यार माँ

पन्छियों के चहचहाने में है तेरी आरती
भोर में हवाएं तेरा आँगन बुहारती

सभी के लबों पे माता तेरा गुणगान है
जगत जननी तू महान है महान है

वे जो तेरी काया पे कुल्हाडियाँ चलाते हैं
हरे भरे जंगलों को सहरा बनाते हैं

ऐसे शैतानों पे भी न आया तुझे क्रोध माँ
तूने नहीं किया किसी चोट का विरोध माँ

मद्धम पड़े न कभी आभा तेरे तन की
लगे न नज़र तुझे किसी दुश्मन की

मालिक से मांगते हैं यही दिन रात माँ
यूँ ही हँसती गाती रहे सारी कायनात माँ

चम्बे की तराइयों में तू ही मुस्कुराती है
हिमालय की चोटियों में तू ही खिलखिलाती है

तुझ जैसा जग में न दानी कोई दूजा रे
मैया तेरे चरणों की करें हम पूजा रे

बच्चे-बच्ची बूढे-बूढी हों या छोरे-छोरियां
सभी को सुनाई देती माता तेरी लोरियां

तेरे अधरों से कान्हा मुरली बजाता है
तुझे देखने से माता वो भी याद आता है

तुझ से ही जन्मे हैं ,तुझी में समायेंगे
तुझ से बिछुड़ के मानव कहाँ जायेंगे

तेरी गोद सा सहारा कहाँ कोई और माँ
तेरे बिना मानव को कहाँ कोई ठौर माँ

ग़ालिब की ग़ज़लें ,खैयाम की रुबाइयाँ
पद्य सूरदास के व तुलसी की चौपाइयां

तेरी प्रेरणा से ही तो रचे सारे ग्रन्थ हैं
तूने जगमगाया माता साहित्य का पन्थ है

मानव की मिट्टी में मिलाओ अब प्यार माँ
जल रहा है नफ़रतों में आज संसार माँ

-अलबेला खत्री

Sunday 7 July 2013

औरतों की आबरू को सरे - कैनवास नंगा करती हैं


मेरे उभार उन्हें आकर्षित करते हैं 

मेरे उरोज पर मनोज सा  मरते हैं 


खूबसूरत  गोलाइयाँ  उन्हें नितम्बों में नज़र आती हैं 

पहाड़ियां और घाटियाँ मेरे  यौनांगों में नज़र आती हैं 


मेरी  नाभि भी  उन्हें बहुत भाती है 

अधरों में अमृत की महक आती है


लेकिन हाय रे 


मेरे दिल का दर्द उन्हें दिखाई नहीं देता 

उर  की पीड़ा का स्वर सुनाई  नहीं देता 


आँखों से वेदना का बहाव तो बेकार लगता है 

और मेरा आत्मिक अस्तित्व भंगार लगता है 


इसीलिए मुसब्बिरों की कूची मेरा शबाब तो उकेर देती है 

पर मेरी तहज़ीब औ मेरी जुर्रत से अपना मुंह फेर लेती है 


लाहनत है ऐसी मुसब्बिरी पर 

जो तसव्वर तो चंगा करती है 


लेकिन औरतों  की आबरू को 

सरे - कैनवास  नंगा  करती हैं 


-रोज़ी

Saturday 6 July 2013

आज भीग जाएँ भीतर से, गीले हो जायें



आओ प्यार करें 
तब तक 
जब तक है ज़िन्दा 
जिस्म का परिन्दा 

आज  भीग जाएँ भीतर से 
गीले हो जायें 

सिलसिला ऐसा चलाओ कि 

सीले हो जायें

डूब जाएँ 
ऐसे 
जैसे 
बुल्ला डूब जाता था अपने मुर्शद की याद में 
आह मिल जाए अपनी मीरा की फरियाद में

-रोज़ी 



Friday 5 July 2013

अरे जिस बेलन से अपने पति को डराती हो, गुंडों के सामने उसे क्यों नहीं लेती हाथ में ....



इ मेल द्वारा आज मुझे मेरे  विचारों पर ये टिप्पणी अथवा टीका-टिप्पणी मिली 

है . किसी भद्र महिला ने ही भेजी है . क्योंकि पुरूष की तो हिम्मत ही नहीं होती  

मुझे सन्देश भेजने की . तो बाकी बात बाद में, पहले वह टीका-टिप्पणी आपको 

दिखा दूँ 


''रोज़ी जी आपने जो विचार प्रकट किये हैं उनमे अपरिपक्वता झलकती है .डंडा लेकर पिटाई करना अगर सब लड़कियों के बस की बात होती तो शायद बदतमीज़ियां यहाँ तक न बढ़ती .ये न भूलें कि लड़कों के परिवार वाले उनकी गलती होते हुए भी उनका पक्ष लेते हैं और लड़कियों को बदनाम करते हैं .बहरहाल आप जिस दिन से ब्लॉग जगत में उदित हुई हैं छा गयी हैं .आपके बारे में सोचने पर जो छवि दिमाग में आती है वो कुछ कुछ ''आरजू'' फिल्म में लड़की बनकर आये राजेन्द्र कुमार से मिलती है''



 अब मेरा कहना यह है कि

अपरिपक्वता झलकती है

अब उनचास साल की उम्र में भी मेरे विचार अपरिपक्व हैं तो अब अगले जनम में ही पकेंगे



डंडा लेकर पिटाई करना अगर सब लड़कियों के बस की बात होती तो शायद बदतमीज़ियां 

यहाँ तक न बढ़ती .

तो फिर झेलो बदतमीजियाँ लड़कों की ...शिकायत का ढकोसला काहे करती हो . अरे जिस

बेलन से अपने पति को डराती हो, गुंडों के सामने  उसे क्यों नहीं लेती हाथ में .......डंडा न

सही,चप्पल तो पहनती हो न बहन, वही फेंक के मारो सालों  को



लड़कों के परिवार वाले उनकी गलती होते हुए भी उनका पक्ष लेते हैं और लड़कियों को 

बदनाम करते हैं  


मतलब ये तो मानती हो कि लड़के के परिवार वाले,लड़के का पक्ष लेते हैं  और  ज़ाहिर

है परिवार सिर्फ मर्दों से नहीं बनता ....उसमे औरत या नारी भी होती है .यानि आप ये

कह रही हैं  कि  नारी भी नारी को ही बदनाम करती है  .पुरूष  का साथ देती है . अब

आपने यह नहीं लिखा कि  जब लड़के के परिवार वाले लड़के का साथ देते हैं  तब लड़की

के घर वाले क्या करते हैं ...........क्या कहा -साथ नहीं देते ..ओह माई गोड ..इसका

मतलब है लड़की के घर वालों को अपनी लड़की की बात का भरोसा नहीं होता . अगर

ऐसी बात है तो  अफ़सोस जनक है  और नारी को भरोसा कायम करने की कोशिश

करनी चाहिए .


आप जिस दिन से ब्लॉग जगत में उदित हुई हैं छा गयी हैं .आपके बारे में सोचने पर 

जो छवि दिमाग में आती है वो कुछ कुछ ''आरजू'' फिल्म में लड़की बनकर आये 

राजेन्द्र कुमार से मिलती है''


यहाँ  तो आपने लूट ही लिया प्यार से ...........भई अगर मैं छा गयी हूँ तो आपको

उत्सव करना चाहिए .मेरा अभिनन्दन करना चाहिए . क्योंकि मैं  अपना टेलेंट ले कर

आई हूँ .लोगों पर फब्तियां कसने के बजाय  मैं   आत्मकेन्द्रित रह कर सृजन करती हूँ .

और रही बात फिल्म आरज़ू की तो मैंने आज तक कोई फिल्म देखी  नहीं, ये

राजेन्द्रकुमार उस फ़िल्ममे क्या बेचते हैं मुझे नहीं पता . मैं तो मेरा  जानती हूँ कि मैं

एक औरत हूँ  लेकिन  दबंग औरत .......केवल नाम और शरीर से नारी हूँ, वर्ना लोग

कहते हैं कि मैं  नाहरी [शेरनी ] हूँ


लब्बोलुआब यह है कि आपको शायद कोई काम नहीं रहा होगा इसलिए बैठे ठाले

आपने  मुझे टीप दिया और मज़े की बात यह है कि मैं भी फ़ालतू  बैठी थी इसलिए

मैंने भी यह टाईमपास कर लिया . न आपकी बात में कोई गम्भीरता है न ही, मेरी

इस पोस्ट में


लिहाज़ा थोड़ा गंभीर होना सीखो ..okay ..........

रोज़ी 





Thursday 4 July 2013

नारी को अपना आत्मसम्मान बचाना है तो अब हाथ उठाना सीख लेना चाहिए .....


आज डांस  की लगातार प्रेक्टिस  से देह को बहुत थकान हो रही है . इसलिए  

कविता लिखने का मूड तो नहीं रहा,  फिर भी  आपकी सेवा में कुछ  तो रखूं .  

इस जज़्बे के साथ  यहाँ आई हूँ  और एक टिप्पणी की थी आज किसी ब्लॉग 

पर, वही यहाँ  पोस्ट कर रही हूँ


सोशल साइट्स ही क्या, आज तो हालत इतनी बदतर होगई है कि  घरेलु 

महिलायें घर में  और कामकाजी महिलाएं अपने ऑफिस में भी महफूज़ नहीं हैं . 

लोग केवल मज़ा लेने के लिए  हमारा मखौल उड़ाते हैं ..ये किसी एक महिला का 

नहीं, वरन  पूरे स्त्री समुदाय का  अपमान और अपरोक्ष शोषण है .लेकिन इसके 

विरुद्ध  कोई कार्रवाही  सरकार कर पाएगी,  इसका भरोसा  मुझे तो नहीं, मेरे 

ख्याल में तो अब नारी को ही डंडा उठाना  पड़ेगा ........


मैं तो इस मामले में सजग रहती हूँ . एक का चार सुनाती हूँ   और ऐसा सुनाती हूँ  

कि  दोबारा किसी की हिम्मत नहीं होती मुझे छेड़ने की ...........अगर ठीक से याद 

करूँ तो अब तक कम से कम दस की तो पिटाई कर चुकी हूँ . आप भी ये  कर के 

देखिये, परिणाम  अच्छा आएगा . यहाँ कलम चला कर  कुछ होने वाला नहीं,  

हाथ चलाना  सीखो ...........


क्षमा करना .कुछ बुरा लगे तो मैं अपने शब्द वापिस ले लेती हूँ 

रोज़ी

Wednesday 3 July 2013

यह बात और photo तो बहुत पसंद आई अलबेला खत्री जी की


अलबेला खत्री ने fb पर आज एक फोटो लगाया 


जो अद्भुत है और अपने आप में अलबेला ही है, 

मैं उसे  यहाँ share  कर रही हूँ

रोज़ी