मेरे उभार उन्हें आकर्षित करते हैं
मेरे उरोज पर मनोज सा मरते हैं
खूबसूरत गोलाइयाँ उन्हें नितम्बों में नज़र आती हैं
पहाड़ियां और घाटियाँ मेरे यौनांगों में नज़र आती हैं
मेरी नाभि भी उन्हें बहुत भाती है
अधरों में अमृत की महक आती है
लेकिन हाय रे
मेरे दिल का दर्द उन्हें दिखाई नहीं देता
उर की पीड़ा का स्वर सुनाई नहीं देता
आँखों से वेदना का बहाव तो बेकार लगता है
और मेरा आत्मिक अस्तित्व भंगार लगता है
इसीलिए मुसब्बिरों की कूची मेरा शबाब तो उकेर देती है
पर मेरी तहज़ीब औ मेरी जुर्रत से अपना मुंह फेर लेती है
लाहनत है ऐसी मुसब्बिरी पर
जो तसव्वर तो चंगा करती है
लेकिन औरतों की आबरू को
सरे - कैनवास नंगा करती हैं
-रोज़ी
वाह वाह रोज़ी दारू वाला जी
ReplyDeleteबहुत खूब .....
कितने मांसल और सरस शब्द भरे हैं आपने कविता में ...मज़ा आ गया
वैसे जहाँ तक मैं समझता हूँ उभार और उरोज तो एक ही अंग के दो नाम हैं , तो दो बार प्रयोग के बजाय आप और किसी अंग का भी नाम ले लेतीं .........बहुत से अंग छोड़ दिए आपने
खैर आप महिला हैं , वयस्क भी हैं तो समझाने वाले हम कौन ..आपको जो अच्छा लगे, लिखिए और कभी कभार चित्र भी लगा दीजिये .........हम वोह भी देख लेंगे
भगवान् आपका भला करे
जय हिन्द
-अलबेला खत्री
धन्यवाद अलबेला जी,
Deleteस्वागत है आपका और आपकी इस व्यंग्यात्मक टिप्पणी का रोज़ी के ब्लॉग पर, मैं ये तो नहीं कह सकती कि आपको कविता की समझ नहीं, लेकिन लगता है आज आपने सुबह सुबह करेले का जूस पी लिया है जिससे आपका मिज़ाज़ थोड़ा कड़वा हो गया है तथा उस कडवाहट को निकालने के लिए आपने मुझे चुन लिया ..कोई बात नहीं, आप कविता और समझ में मुझ से बहुत बड़े हैं इसलिए मैं आपकी बात का बुरा नहीं मानती . लेकिन इसी तरह की टिप्पणी अगर कोई और कर देता तो आपकी कसम अलबेला जी, मैं उस की ऐसी मारती कि ज़िन्दगी भर पिछवाड़ा गीला रहता उसका ......
खैर आप इस कविता को मेरे निवेदन पर पुनः पढ़ें और फिर अपने विचार बताएं . हो सकता है आप स्वयं टिप्पणी वापिस लें लें . आपके आने से मेरा ब्लॉग धन्य हो गया है श्रीमान, आते रहिएगा ..........अच्छा लगता है
-रोज़ी
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ReplyDeleteवैसे मुझे अलबेला जी इतनी कविता एवं रचना की समझ नहीं है, लेकिन आपकी कविता में प्रवाह समझ आता है, कुछ शब्द "बोल्ड" अवश्य हैं, यही इस कविता का माधुर्य है। ये शब्द "इटैलिक" होते तब भी कविता में सरसता बनी रहती।
ReplyDeleteनव काव्य सृजन पर शुभकामनाएँ
aapka swagat hai lalit sharma ji,
ReplyDeleteaapke comment ka bhi swagat hai
rosy
एक नारी की पीड़ा उभर कर सामने आई है कि उसके अपने भी उसको उतना ही समझते हैं जितना अन्य। शब्दों में अश्लीलता नहीं है क्योंकि यह कविता है जो कि नारी का दर्द बयां कर रही है....
ReplyDeleteबहुत लाजवाब कविता ....भीतर का दर्द उजागर करती
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