आज भीग जाएँ भीतर से, गीले हो जायें
आओ प्यार करें
तब तक
जब तक है ज़िन्दा
जिस्म का परिन्दा
आज भीग जाएँ भीतर से
गीले हो जायें
सिलसिला ऐसा चलाओ कि
सीले हो जायें
डूब जाएँ
ऐसे
जैसे
बुल्ला डूब जाता था अपने मुर्शद की याद में
आह मिल जाए अपनी मीरा की फरियाद में
-रोज़ी
thanks ROZI ji to inspire me to write a song like this .have fun -
ReplyDeletehttp://vicharonkachabootra.blogspot.in/2013/07/blog-post_7.html
bhavanaon ka atirek
ReplyDeletekya yahi kavita hai
ReplyDeletejise aap aadhyatmik kahti hain
badi geeli kism ki aadhyatmikta hai ji..........
prabhu aapko khoob geela rakhe........meri shubh kaamnaayen
-albela khatri
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Deleteआपके शब्द मेरे लिए आशीर्वाद की तरह है आदरणीय अलबेला जी ........
ReplyDeleteआप जो भी कहेंगे, मुझे स्वीकर होगा, क्योंकि आप एक जन्मजात पुरूष हैं और पुरूष की बात का क्या बुरा मानना ,,,, बेचारे पहले ही घर के सताए हुए होते हैं ......यहाँ भी हम आपके कपड़े उतारेंगे तो आप लाज बचाने जाओगे कहाँ .........हा हा हा कैसी रही कविराज ....
जो भी हो कल आपकी एक कविता मैंने फेसबुक पर पढ़ी थी प्रकृति वाली .........कसम से भीतर भीतर फूल खिल गया आनंद का .....मैं वो कविता अपने ब्लॉग पर लगाना चाहती हूँ ......क्या आप अनुमति देंगे
-रोज़ी